Dedicated to my sister "Soni"

Mark of love, devotion and sacrifice...  Although you are not in this materialistic world,  but the memories and those emotions make your presence. And your presence always inspires me. All my poems that will ever publish on this blog, will be your inspirations. 
You are always with me...


~SUNITA 1984-2010~
अन्त
जीवन मे धागे साँसों के कमजोर नहीं हो सकते यूं।
अपने तो अपने होते हैं वो दूर नहीं हो सकते यूं।
विश्वास मुझे आता हि नहीं, आँखें वो अब खुल सकती नहीं।
बातें रिमझिम बौछारों की, सुनकर भी वो सुन सकती नहीं।

हर सुबह वक्त ये कहता है, आकर सर वो सहलायेगी।
बस आज नहीं तो कल हि सही, वो लौट के फ़िर तो आयेगी।
आती है याद विदाई वो, कन्धों पे तेरे सोया था।
पर कन्धों पर रखकर तुझको, मैं आज तो यूं रो सकता नहीं।

लड़ना भी खुद से पड़ता है, कारण है की तू पास नहीं।
हिस्सा भी अब बँट जाता है, तेरे आने की आस नहीं।
पर आज ये वादा करता हूं लड़ूगा ना मैं तुझसे यूं।
हिस्सा अपना भी दे दूंगा, बस मुझसे ना तू रूठे यूं।

कह दे एक बार कि झूठ है सब, जब अर्थी पर तू लेटी थी।
एक बार भी मुझसे मिलने की ,जब राह ना तूने देखी थी।
फ़िर जल भी गयी तू धूं धूं कर, कैसे ये तूने सहन किया।
एसी भी क्या मजबूरी थी, जो रोने भी ना मुझको दिया।

ये राखी तेरी बाधी है, हर साल ये राखी बाधूंगा।
आयेगी देने आशीष मुझे, ये राह तेरी मैं ताकूंगा।
झुठला सकता नहीं यूं मैं, है पास कहीं मेरे फ़िर भी।
देखा है मेरी आंखों ने, इन यादों ने सांसों ने भी।

वो पार खड़े होकर मुझपे, हंस रही मेरी नादानी पर।
हंसकर कहती है हंस ले तू, है जीवन यहीं युं हंसने पर ।
ये अंत नहीं इस कविता का, ये अंत तो कुछ होता हि नहीं।
ये अंत अनंत हि होता है, इस अंत का कोइ अंत नहीं।

मेरी प्यारी बहन सोनी को मेरे, शब्दों की श्रद्धाँजलि समर्पित …
अभय कुमार