वेदना

कितनी दर्द भरी होती है ये वेदना, बैचैन करने वाली। एक भयंकर अन्तर्दव्न्द पैदा कर देती है। और कितनी निष्ठुर भी होती है, कारण पूछो तो मूँह पे ताला लगा लेती है। क्यूँ आयी है तू यहाँ? क्या चाह्ती है मुझसे? पर ज्यों ही एसा कोइ सवाल उससे पूछ्ता हूँ। अपना मूँह फ़ेर के बैठ जाती है। पर मै जानता हूं क्यूं आती है वो यहां, वो आती है, इस कोलाहल मे थोड़ी शान्ती पाने को; इस अँधेरे मे थोड़ी रोशनी पाने को। पर भटक जाती है, और भी अशान्त हो जाती है। सोचती है; शायद ये अँधेरा थोड़ा छट जाये, पर दुर्भाग्य! क्या मिलता है उसे, शान्ती के नाम पे बस सन्नाटे, और रोशनी के नाम पे बस वो बिखरे चिराग ! बस यही तो मिलता है उसे …॥