जो निश्चल है, हर पल समर्पित है… उस माँ को मेरी "अभिव्यक्ति" समर्पित ॥


अभिव्यक्ति

ना मिलते मुझको शब्द कोई,
जिससे तुझको मैं व्यक्त करूं।
माँ तू है एक अनन्त कोई,
कैसे खुद को अभिव्यक्त करूं॥

तेरी निश्चल सी वो आंखें,
गर दर्द मुझे हो, रोती हैं।
फ़िर हंसता मुझको देखकर,
खुद यूं ही वो हंस देती हैं।
उन आंखों की खुशी के लिये,
हर पल को मैं अर्पण करूं,
माँ तू है एक अनन्त कोई,
कैसे खुद को अभिव्यक्त करूं॥

                                 तेरी कोमल सी वो बातें,
                              सहलायें मेरी हर सांसें।
  लोरी तेरी गूंजें हर पल,
सहमायें जब मुझको रातें।
तेरे मुख के हर शब्दों को,
दिल में अपने ही मैं भर लूं।
माँ तू है एक अनन्त कोई,
कैसे खुद को अभिव्यक्त करूं॥

सह पाती ना एक आह मेरी,
हर दर्द मेरा पी लेती तू।
जब कभी मुझे ठोकर लगती,
झट से गोदी ले लेती तू।
माँ दर्द कभी ले के तेरा,
अपना जीवन साकार करूं।
माँ तू है एक अनन्त कोई,
कैसे खुद को अभिव्यक्त करूं॥

मैं रहूं सफ़ल इस जीवन में,
तू करती है बस आस यही।
जब गिरे कभी विश्वास मेरा,
आती मुझको बस याद तू ही।
आशीष तेरा हर पल मुझपे,
कैसे यूं ही पथ से भटकूं।
माँ तू है एक अनन्त कोई,
कैसे खुद को अभिव्यक्त करूं॥

माँ शब्द तू ही, है अर्थ तू ही,
है जीवन का आधार तू ही।
माँ ब्रम्ह तू ही, आनन्द तू ही,
मैं हूं इसकी भी वजह तू ही।
तू रहे सदा इस दुनिया में,
इन सांसों पे सिमरन करूं।
माँ सच मे है, अनन्त कोई…
कैसे इसको अभिव्यक्त करूं॥

“ये पक्तियाँ मेरी माँ को समर्पित”
अभय कुमार