दिवाली
दुलहन सी सजी हैं दुकानें
चमकती कंडिलें महकते
पकवान...
हर तरफ तांता लगा है लोगों का...
लाखों आये हैं,जलसे मे मेहमान।।।
अब आतिशबाजियां हुई शुरू...
बजते पटाखे और उड़ते जहाज...
होता है हड़कंप, ऐसे ना कभी भी...
लगता है जैसे.... “दिवाली” है आज।।।
लोग यहाँ मदमस्त नाचते...
ढोल नगाड़े, बेखौफ बजाते...
जलाके फुलझड़ियाँ,आँखे चौधाते।।।
मैं भी टटोलती,कोने झुग्गी के...
जहां कभी, संभाला था 'दीया'...
पर देगा कोई..क्या तेल दीये-भर?
या रहेगा अंधेरा..फिर आशियाना मेरा...।।।
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