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खुदा

अनोखा ये एहसास है, खुद में मिल जाने का...
कमियों के बीच कहीं, पूरा सा दीखता हूँ...
व्यथाए कुछ कम हैं, द्वेष भी नहीं रहा ...
लगता है जैसे की, खुद को पा लिया ||


अब ना अकेला हूँ, जिन्दगी के सफ़र में...
जज्बा भी कहीं अब दीखता नहीं टूटता...
विश्वाश की डोर ये, कही तो बधीं है...
लगता है जैसे की, खुद को मैंने पा लिया ||

अब ना है निराशा, ना ही तो कमी है...
जवाब हर सवाल का, मुझमे ही कहीं है...
करम ये तेरा है, मेरा कुछ भी नहीं.... ऐ खुदा !!
लगता है जैसे की, तुझको मैंने पा लिया ||

                                    अभय कुमार
                                    १६ अप्रैल २०१५


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